Aapka Vyktitva Aapka Vikas
Aapka Vyktitva Aapka Vikas
Rakesh Kumar
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व्यक्तित्व-विकास निजी क्षमताओं का वह क्रमिक व व्यवस्थित-विकास है जो सामाजिक-व्यवहार पक्ष के स्वीकार्य प्रारूप का अंग मात्र है अर्थात् विकास की दिशा का स्तर समाज-स्वीकार्य ही होते हैं। विकास के प्रयास व क्षमता वैयक्तिक होने पर भी। अभिप्राय यह है कि व्यक्तिगत क्षमताओं को सामाजिक अर्थो में स्वीकार्य बनाना वैयक्तिक बाध्य सीमा है जिसमें तथ्यों के प्रारूप समाज ही उपलब्ध करवाता है। विश्लेषणात्मक आधारों पर वास्तविक-बोध को भी समाज स्वानुकूल अर्थ देता है जो तथ्यों के वास्तविक स्वरूप में भिन्न हो सकता है। अतः वैयक्तिक प्रयासों व क्षमताओं पर समाज प्रभाव अभ्यास आदतवश प्रभाव रहता ही है। किसी कौशल को सामाजिक-स्वीकार्यता के अनुरूप बनाना तथैव तथ्यों के आधार पर भी वास्तव में समाज के स्तर व बोध का परिचायक है या व्यक्ति-विकास के स्तर पर भी समाज-अवधारणाओं का प्रतिबिम्ब बनकर रह जाता है। किसी भी क्षेत्र में यहाँ तक आसामान्य (विकृति, व अपराध) के स्तर पर भी। व्यक्ति तटस्थ व मौन रह सकता है किन्तु प्रतिष्ठा व आकांक्षाओं का प्रारूप भी सामाजिक आधारों पर गतिमान होता है। अतः समाज प्रभाव को स्वीकारते हुए प्रस्तुत है- आपका व्यक्तित्व आपका विकास ।
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Rakesh Kumar
