Bachchon Ka Vyaktitv-Vikas Kaise Ho
Bachchon Ka Vyaktitv-Vikas Kaise Ho
Dr.Shakuntla Kalra
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बालक ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है। उसके विकास के लिए घर में माता-पिता, विद्यालय में शिक्षक और समाज की हर इकाई, बालसेवी सस्थाएँ एवं प्रेरक साहित्य की संयुक्त भूमिका है। परिवार यानी माता-पिता बच्चे के व्यक्तित्व-निर्माण की पहली पाठशाला है। उसमें भी 'माँ' की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण है। अगर माता-पिता उसके प्रत्येक कार्य में रुचि लेते हैं, तो बालक में उत्तरदायित्व, सहयोग, सद्भावना आदि सामाजिक गुणों का विकास होगा और वह समाज के संगठन में सहायता देने वाला एक सफल नागरिक बन सकेगा। शिक्षालय के पर्यावरण का भी बालक के मानसिक स्वाथ्य पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। उसका शिक्षक तथा सहपाठियों से जो सामाजिक संबंध होता है वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हर बालक अनगढ़ पत्थर की तरह है जिसमें सुन्दर मूर्ति छिपी है, जिसे शिल्पी की आँख देख पाती है। वह उसे तराश कर सुन्दर मूर्ति में बदल सकता है। क्योंकि मूर्ति पहले से ही पत्थर में मौजूद होती है शिल्पी तो बस उस फालतू पत्थर को जिससे मूर्ति ढकी होती है, एक तरफ कर देता है और सुन्दर मूर्ति प्रकट हो जाती है। माता-पिता, शिक्षक और समाज बालक को इसी प्रकार सँवार कर खूबसूरत व्यक्तित्व प्रदान करते हैं। बच्चे स्वर्ग के देवताओं की अमूल्य भेंट हैं। इस अमूल्य भेंट की देखभाल हमें पूरे मनोयोग से करनी है। बच्चों की उन्नति में पूरे राष्ट्र की समृद्धि छिपी है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति ही नहीं वरन् उनका अस्तित्व भी बाल-शक्ति के प्रभावशाली उपयोग में निहित है। आज के बालक जो कल के नागरिक होंगे, उनकी क्षमताओं, योग्यताओं का शीघ्र पता लगाकर उनको वैसा प्रशिक्षण देकर ऐसी दिशा में मोड़ा जाए, जिससे केवल उन्हें ही आत्म-संतुष्टि न हो वरन् राष्ट्र की समृद्धि में उनका समुचित योगदान मिल सके। ये निबंध बच्चों के व्यक्तित्व विकास में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगे।
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Dr.Shakuntla Kalra
