Bal Karan
Bal Karan
Dr. Mahendra Mittal
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‘महाभारत’ ग्रंथ में सूर्यपुत्र कर्ण का चरित्र, एक महादानी के रूप में चित्रित हुआ है। वह एक ऐसा चरित्र है, जो अपने जन्म की परिस्थितियों के कारण अत्यधिक संवेदना का पात्र बन जाता है। कर्ण का जन्म कौमार्यकाल में ही महाराज कुंतिभोज की पुत्री पृथा के गर्भ से होता है, जो उसे लोकलाज के भय से गंगा में बहा देती है। बाद में यह बालक हस्तिनापुर राज्य के रथी अघिरथ और उसकी पत्नी राधा के द्वारा पाला जाता है। पृथा रिश्ते में श्रीकृष्ण की बुआ लगती हैं। हस्तिनापुर राज्य के महाराज पांडु की धर्मपत्नी के रूप में पृथा, जो बाद में कुंती नाम से प्रसिद्ध हुई और पाँचों पांडवो की माता बनी, उस बालक कर्ण को एक प्रतियोगिता के अवसर पर पहचान लेती है। वह बालक कर्ण क्षत्रिय पुत्र होते हुए भी, सूतपुत्र के रूप में पलता है और बार-बार अपने सूतपुत्र होने के कारण, प्रताड़ित और अपमानित होता है। कर्ण की यह व्यथा, इस आत्म-कथात्मक शैली में लिखी ‘बाल कर्ण’ पुस्तक में सजीव हो उठी है। लेकिन हस्तिनापुर का राजकुमार दुर्योधन उसे अंग देश का राजा घोषित करके, उसकी इस पीड़ा को बहुत कुछ कम करता है और उसे अपना मित्र बना लेता है। कौरव-पांडुवों के महाभारत युद्ध में कर्ण कौरवों का साथ देकर पांड़वों के विरुद्ध युद्ध करता है, यह जानकर भी कि वे उसके अपने छोटे भाई हैं। कर्ण का यह चरित्र, निश्चित रूप से आपको हीन ग्रंथियों से बाहर निकलने और ऊपर उठने में तुम्हारा सहायक होगा, ऐसा हमारा विश्वास है।
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Binding
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Hard Cover
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Dr. Mahendra Mittal
