Kashi ki Etihasik Avem Sanskritik Prishthabhumi
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शैव परम्परा का आरम्भ साहित्यिक रूप से वैदिक काल तक जाता है। उपनिषद काल तक शिव के विभिन्न नाम एवं महत्ता स्थापित हुआ। तदन्तर विभिन्न काल खण्डों में शैव परम्परा का विकास होता रहा। गुप्तकाल पहुँचते-पहुँचते काशी में शैव परम्परा अपनी सांप्रदायिक विशेषताओं के साथ पल्लवित पुष्पित होता रहा, तथा तसंबंधी मंदिर निर्माण का शुभारम्भ हुआ। गुप्तोत्तर काल में जहाँ साम्प्रदायिक विभाजन का स्पष्ट रूपरेखा काशी में शैव धर्म के अन्तर्गत दिखने को मिलता है। पूर्वमध् यकालीन शैव परम्परा अपने अभिवृद्धि को प्राप्त हुई, तथा काशी, शैव धर्म के लिए प्रसिद्ध हो गयी। मंदिर वास्तु, मूर्ति निर्माण की परम्परा उत्कर्ष को पहुँची। घाटों की संस्कृति अविच्छिन्न रूप से काशी, गंगा एवं शिव से जुड़ती चली गई। समग्र अध्ययन से यह ज्ञात हो गया कि शैव परम्परा स्पष्टत : गुप्तकाल से 1200 ई. तक निरन्तर प्रवाहमान् रही, और आज भी अपने श्रीवृद्धि को प्राप्त कर रही है।
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