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Khushbu

Khushbu

Rajender Raj

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रहती हो जब तुम पास मेरे गेसुओं की खुशबू से चाहत के फूल खिलते हैं मुहब्बत के मोती मिलते हैं। 'खुशबू' सुर्ख लबों से छलकती है पटियाला की शराब गर्दन के गुलाबी तिल पर जयपुर का शबाब। 'खुशबू हो तुम मेरे ख़्वाबों-खयालों की' जो झुक जाओ जमीन पर किसी हसीन बहाने से छलक जाता है कितना शबाब हुस्न के पैमाने से। 'आफत तुम्हारा हुस्न अदाएँ 440 वॉल्ट की' मुस्कराकर जब नज़र के तीर तरकश से चलाती हो दिल को घायल करती हो दर्द जिगर में भरती हो। 'ठग लेती हो अपनी इन अदाओं से' ओढ़कर नीली चुनरिया माथे पे जो बिंदिया सजाती हो जूड़े में गजरा लगा के और हसीन हो जाती हो। 'तुम पर डोरे डालने को जी करता है'

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Author

Rajender Raj

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