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Krantikariyon ke Patron ka Darpan

Krantikariyon ke Patron ka Darpan

Rajendranath Baxi

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भारत के स्वाधीन होने के पूर्व, प्रत्येक भारतीयों के मन में, अपने देश को स्वाधीन कराने तथा देश-हित की भावना ही सर्वोपरि रहा करती थी। स्वाधीनता के पश्चात् इन 72 वर्षों में समाज में हुए परिवर्तनों तथा आम लोगों की सोच में हुए बदलाव के कारण, लोगों में देश-हित की भावना विलुप्त-सी हो गई प्रतीत होने लगी है। देश की स्वाधीनता के लिए आम जन ही नहीं, क्रांतिकारियों ने अपना सर्वस्व देश-हित के लिए अर्पित कर दिया था, जिसे वर्तमान समाज ने विस्मृत कर दिया है, जिस कारण आज प्रत्येक क्षेत्र में अनैतिकता का बोलबाला है तथा देश-हित की भावना लोगों के मन-मस्तिष्क से विलुप्त हो रही है। देश-हित की भावना को पुनः जाग्रत करने तथा वर्तमान पीढ़ी के लोगों को, उस समय के लोगों की देश-हित की भावना से अवगत कराने के उद्देश्य से इस पुस्तक में छः क्रान्तिकारी, तीन मूर्धन्य साहित्यकार तथा एक गणमान्य राजनीतिज्ञ द्वारा लिखे गए पत्रों के सन्दर्भ में इस पुस्तक की रचना की गई है ताकि पाठकगण उस जमाने के लोगों की भावना से अवगत होकर, उनमें भी देश-हित की भावना जाग्रत हो सके।

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Hard Cover

Author

Rajendranath Baxi

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