Krantiveer Ramprasad 'Bismil'
Krantiveer Ramprasad 'Bismil'
Dr. Lalbahadur Singh Chauh
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आज हमारा देश स्वतंत्र है, परन्तु हमें यह न भूलना चाहिए कि इसके लिए कितने देश-प्रेमियों ने अपने प्राणों की आहुति दी होगी, न जाने कितने प्रकार के अमानवीय व्यवहार और पाशविक अत्याचारों को सहन किया होगा। भारत की स्वतंत्रता का यह संघर्ष केवल चंद महीनों और वर्षों का नहीं था, अपितु लगभग सौ वर्ष का महासंग्राम था। सन् 1857 में जो स्वतंत्रता संग्राम प्रारम्भहुआ था, उसका अंत 15 अगस्त सन् 1947 को हमें देश की आजादी प्राप्त होने पर हुआ। इन सौ वर्षों के महासंग्राम में देश के अनेक वीरों ने हिस्सा लिया था। उनमें कुछ का नाम तो प्रकाश में आया और इतिहास के पृष्ठों पर अंकित है, पर शेष सब गुमनामी के अंधकार में लुप्त हो गए। ऐसी दशा में देशवासियों का यह पावन कर्त्तव्य हो जाता है कि वे उन क्रांतिवीरों को भुलाएं नहीं। इसका अनुमान आजादी के लिए प्रयासरत उन अमर शहीदों की गाथाओं को जानकर लगाया जा सकता है जिन्होंने अपने प्राणों का मोह छोड़कर हंसते-हंसते देश के लिए जीवन बलिदान कर दिया और फांसी के फंदे की ओर मुस्कुराते हुए-इंकलाब जिंदाबाद, ब्रिटिश साम्राज्य मुर्दाबाद के नारे लगाते शहीद हो गए। ऐसे ही शाहजहांपुर के एक वीर सपूत क्रांतिकारी रामप्रसाद 'बिस्मिल' थे जो दिनांक 9 अगस्त सन् 1925 को लखनऊ के निकट घटित 'काकोरी क्रांतिकारी ट्रेन डकैती काण्ड' के नायक थे, जिन्हें दोषी करार कर अंग्रेज सरकार ने गोरखपुर में फांसी की सजा दी । रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों ने अपने गलों में फांसी के फंदो को गर्व के साथ विजय प्रतीक के रूप में स्वीकार किया। ऐसे महान क्रांतिवीर रामप्रसाद 'बिस्मिल' की जीवन-गाथा है यह पुस्तक जो सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक हिंदी भाषा में रोचक और कथात्मक शैली के माध्यम से प्रस्तुत है।
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Hard Cover
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Dr. Lalbahadur Singh Chauh
