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Man Tarang
Man Tarang
Manju Mann
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समन्दर की लहरों पर जैसे अंडे देती हैं मछलियाँ वैसे मन सेता रहता है उसकी तरंगों पर पनपते सपनों को मछलियाँ रहती हैं मदमस्त मछलियों को ऐतबार होता है लहरों पर और मन को सपनों पर मगर मन भरोसा नहीं करता अपनी ही तरंगों पर फिर भी जैसे उठकर नाचती हैं मछलियाँ अंडे देने से पहले मन भी उछलता है सपनों की आहट पर सपनों का ग्राहक बनकर सपनों का वाहक बनकर देता रहता है तरंगों को हौंसले के सपने हिम्मत के सपने हसीन सपने पल में प्रदीप्त करते सपने ताकि तरंगें उन्हें दूर तक फैला सकें जहाँ तक मनुष्य है उन सपनों को जिन्हें कभी उसने पोसा एक तरंग है शायद मन की तुम चाहो तो उसे कह सकते हो "मन-तरंग" जिसमें सम्मिलित है उमंग, भावों की मृदंग, उसकी, इसकी चिन्ता या कि भावाकुलता ॥
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Manju Mann
