Manvadhikar Prashnottri
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भारत में जातियों, धर्मों, रीति-रिवाजों तथा खान-पान में भिन्नता के बावजूद एक सर्वव्यापी एकता के दर्शन होते हैं। 'अनेकता में एकता' भारत संस्कृति का विशिष्ट तत्व है। प्राचीन काल से ही अनेक प्रजातियाँ व जातियाँ यहाँ आकर बसती गर्मी तथा भारतीयता मे समाहित होती गयी। परस्पर आदान-प्रदान तथा अभिसार की प्रक्रिया द्वारा एक समन्वित भारतीय व्यक्तित्व का जन्म हुआ। यही कारण है कि यह बताना कठिन है कि भारतीय संस्कृति का कौन-सा रूप अपना है तथा कौन-सा पराया है। भौतिक रचना, जलवायु, वनस्पति, जीव-जन्तु, कृषि, खनिज तथा औद्योगिक संसाधनों की विविधता के कारण भारत में मानवीय तथा सांस्कृतिक भूदृश्यों की भी विषमता पायी जाती है, तथापि समस्त तत्व एक समन्वित संस्कृति के सुत्र में बंधे हुए है। पाश्चात्य विद्वानो ने भारत को 'उपमहाद्वीप की संज्ञा दी है। कैसी के मत में भारत को उपमहाद्वीप कहलाने का उतना ही अधि कार है जितना यूरोप को। इस कथन की सार्थकता कुछ तथ्यों से स्पष्ट होती है।
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