Media : Muddey aur Chunautiyan
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Dr. Sushil Upadhyay
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एक विषय के तौर पर मीडिया अध्ययन भारत में उभरता हुआ और संभावनाशील क्षेत्र है। यह जितना संभावनाशील है, उतना ही व्यापक भी है। इसका दायरा इतना बड़ा है कि इसमें लोक माध्यम से लेकर अधुनातन सोशल मीडिया तक शामिल है। जब इस विमर्श में मीडिया के साथ भाषा भी जुड़ जाए तो इसकी सीमा-रेखा और भी बड़ी हो जाती है। बीते कुछ सालों में जिन विषयों पर बहुत कुछ लिखा गया है और लिखा जा रहा है, उनमें मीडिया भी एक है। स्थापित सिद्धांतों की व्याख्या, पुनर्व्याख्या के साथ इसके प्रयोगात्मक पक्ष पर भी निरंतर कार्य हो रहे हैं। इस प्रक्रिया ने उस पुरानी धारणा को काफी हद तक खत्म करने का काम किया है कि मीडिया को न तो कक्षाओं में पढ़ाया जा सकता है और न ही बौद्धिक-विमर्श से उसका कोई भला हो सकता है। अब, मीडिया एक साथ, दोनों जगह मौजूद है-बौद्धिक विमर्श में भी और कक्षाओं में भी। देश-भर में मीडिया पर अब तक अनेक किताबें प्रकाशित हो रही हैं। ऐसे में, ये दावा करना कि ये ही किताब सबसे विशिष्ट होगी, काफी चुनौतीपूर्ण है। फिर भी यह कोशिश जरूर की गई कि इस किताब में उन विषयों को समेटा जाए जो समकालीन मीडिया के केंद्र में हैं। साथ ही, मीडिया के भीतर दलितों की स्थिति, महिलाओं की हालत से लेकर कमजोर वर्गों की खबरों के रंग-ढंग तक पर ध्यान दिया गया है।
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Dr. Sushil Upadhyay
