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Prem Ka Pyala

Prem Ka Pyala

Krishan Kumar sharma

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'प्रेम का प्याला' रसिकजी का एक ऐसा काव्य-संकलन है, जो मिशरी रूपी स्याही से प्रेम पाती लिखकर, प्रेमसागर में गोते लगाता है, तो सावन भी उसमें अंगड़ाई लेने को आतुर हो उठता है। 12 महीने बसंत ऋतु का अनुभव कराने वाली ये कविताएँ कभी काले चितकबरे जैसी गलती हैं तो कभी इन्द्रधनुष सी मन-मोहक तस्वीरें बनाती हुई, अपने हमसफर वे + स्नेह सरोवर में ऐसे गोते लगाते हैं कि उनके यौवन की मादकता ने मानो चौदह भुवनों की सैर कर ली हो। ऐसे में रसिकजी की लेखनी, प्रेम का अनुबंध जीवन के बदले जीवन से करते हुए, कभी न ढलने वाले यौवन की तुलना उस भरे हुए आम की बगिया से करने लगती है, जिसकी मोहक सुगंध से मोहित होकर वे अपना सर्वस्व भूल जाते हैं। प्रेम से दोहों में उन्होंने प्रेम को दुनिया का सर्वोच्च स्थान देकर, सम्पूर्ण विश्व को प्रेम वे+ भव-सागर में गोते लगाने की सलाह देकर, यह बताने की कोशिश की है कि, "वे+सा होगा वह दिन जिस दिन सारा विश्व प्रेममय हो जाएगा।" प्रेम वे+ कई रूपों को दर्शाता, प्रेम का यह प्याला आधुनिक समाज के लिए रसिकजी की एक अनुपम भेंट है। रसिकजी को अनेकों शुभकामनाओं सहित ।

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Krishan Kumar sharma

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