Premchand ke Dalit Evam Shoshit Patron ki Mook Vedana
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'प्रेमचंद के दलित एवं शोषित पात्रों की मूक वेदना' में प्रेमचंद के कृति-व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी संवेदनात्मका को अवलोकित किया गया है। इसमें प्रेमचंद के जड़ धार्मिक संस्कारों में जकड़े किसानों की आंतरिक दुर्बलता के दर्शन होते हैं। इसमें परिवर्तन हेतु क्रांति के पक्षधर प्रेमचंद के मनोभावों को उनके विद्रोही अस्पृश्यों में उजागर होते देखा जा सकता है। कृति में भारतीय समाज की वर्ण-व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए इसके दुष्परिणामों पर चिंतन किया गया है। यह कृति भारतीय लोक-संस्कृति का अध्ययन करते हुए इसके माध्यम से लोकभावना को अभिव्यक्त करती है। कृति में दलित साहित्य की सार्थकता पर विचार करते हुए इसकी प्रामाणिकता एवं प्रासंगिकता को रेखांकित किया गया है। यह कृति प्रेमचंद के दलित एवं शोषित पात्रों का मनोविश्लेषण करते हुए आज के समाज में फैली असमानता की गहराई को नापने का प्रयास करती है। यह शोषित एवं वंचितों के लिए सामाजिक न्याय की माँग करती है तथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समाज से दलित-विमर्श हेतु आग्रह करती है।
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