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Rashtriya Swayamsevak Sangh Ke Sarsanchalakon Ki Jeevni

Rashtriya Swayamsevak Sangh Ke Sarsanchalakon Ki Jeevni

Sanchita Kumari

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अपने समाज धर्म-परिपालन करनेवाले, प्रत्यक्ष अपने जीवन में उसका आचरण करनेवाले तपस्वी, त्यागी एवं ज्ञानी व्यक्ति एक अखंड परंपरा के रूप में उत्पन्न होते आए हैं। उन्हीं के कारण अपने राष्ट्र की वास्तविक रक्षा हुई है और उन्हीं की प्रेरणा से राज्य-निर्माता भी उत्पन्न हुए हैं। अतः हम लोगों को समझना चाहिए कि लौकिक दृष्टि से समाज को समर्थ, सुप्रतिष्ठित, सद्धर्माधिष्ठित बनाने में तभी सफल हो सकेंगे, जब उस प्राचीन परंपरा को हम लोग युगानुकूल बना, फिर से पुनरुज्जीवित कर पाएँगे। आज के युग में तो राष्ट्र की रक्षा और पुनःस्थापना करने के लिए यह आवश्यक है कि धर्म के सभी प्रकार के सिद्धांतों को अंतःकरण में सुव्यवस्थित ढंग से ग्रहण करते हुए अपना ऐहिक जीवन पुनीत बनाकर चलनेवाले, और समाज को अपनी छत्र-छाया में लेकर चलने की क्षमता रखनेवाले असंख्य लोगों का सुव्यवस्थित और सुदृढ़ जीवन एक सच्चरित्र, पुनीत, धर्मश्रद्धा से परिपूरित शक्ति के रूप में प्रकट हो और वह शक्ति समाज में सर्वव्यापी बनकर खड़ी हो। यह आज के युग की आवश्यकता है। इस आवश्यकता को पूरा करनेवाला जो स्वयंस्फूर्त व्यक्ति होता है वही स्वयंसेवक होता है और ऐसे स्वयंसेवकों की संगठित शक्ति ही इस आवश्यकता को पूर्ण करेगी ऐसा संघ का विश्वास है।

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Author

Sanchita Kumari

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