Sanskriti Prashnottri
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Dr. M.K.Mishra
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मनुष्य अपनी सभ्यता का विकास कैसे एक सके ? मनुष्य से समानता रखने वाले दूसरे प्राणी वानर, वनमानुष आदि ऐसी सभ्यता का विकास क्यों नही कर पाए ? ऐसे प्रश्नों के उत्तर भी विद्वानों ने दिऐ हैं। प्राणी जगत में मनुष्य ही अपनी सभ्यता का विकास कर सका, इनके कारणों के बारे में विद्वानों का एक वर्ग यह मानता है कि मानव सभ्यता के विकास का मूल आधार कार्य - कारण की अनिवार्य परंपरा है। इस सभ्यता वाले विद्वान कहते हैं कि सभ्यता, जिसे सुविधायुक्त सामूहिक जीवन जीने की स्थिति कहा जाता है, मनुष्य में प्रकृति से प्राप्त विचार शक्ति और प्रकृति में घटने वाली घटनाओं के कार्य-कारण में अन्तः क्रिया का परिणाम है। मनुष्य का विचार शक्ति ने उसे प्रकृति में घटने वाली घटनाओं के कार्य-कारण सम्बन्धों पर विचार करने के लिए प्ररिता किया। फिर जब मनुष्य का किसी प्राकृतिक घटना के कार्य-कारण सम्बन्धों का सही-सही पता चाल तो ऐसे कई बार के अनुभवों के आधार पर उसने प्रकृति में जो कुछ जैसा था और जिसे अपनी जीवन यात्रा के हजारों हजार वर्ष से मनुष्य स्वीकार करता आ रहा था उसे स्वीकार करना बन्द कर दिया और अपने हाथों की चेष्टा या प्रयत्न से किसी कारण का जन्म देकर प्रकृति में जो जैसा कि उसे बदलने का उपक्रम किया। इस उपक्रम के साथ ही मनुष्य ने सभ्य बनने अथवा सभ्यता के विकास की तरफ अपने पाँव बढ़ाने प्रारंभ किए। फिर किसी क्रम में मनुष्य अपने प्रयत्नों के कारणों को जन्म देने लगा, उसके परिणाम प्रकट हाने लगे और इस तरह क के बाद दूसरे कार्य-कारण की अटूट परंपरा बनती गई।
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Dr. M.K.Mishra
