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Sheikh Sadi ke Kahaniyian

Sheikh Sadi ke Kahaniyian

Sheikh Sadi

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शेख सादी के पिता धार्मिक वृत्ति के मनुष्य थे। अतः उन्होने अपने पुत्र की शिक्षा में भी धर्म का समवेश अवश्य किया होगा। इस धार्मिक शिक्षा का प्रभाव सादी पर जीवन पर्यन्त रहा। उनके मन का झुकाव भी इसी ओर थे। वह बचपन ही से रोजा, नमाज आदि के पाबन्द रहे। सादी के लिखने से प्रकट होता है कि उनका पिता का देहान्त उनके बाल्यकाल ही में हो गया था। संभव था कि ऐसी दुरवस्था में अनेक युवकों की भाति सादी भी दुर्व्यसनों में पड़ जाते लेकिन उनके पिता की धार्मिक शिक्षा ने उनकी रक्षा की। सादी उम्र भर देश-परदेश में दूर-दूर तक घूमते रहे। वह भारत भी आये थे। चलते-फिरते, उठते-बैठते वह इन्सानों को बड़ी गहरी नजरों से देखते रहते थे और उनकी आदतों, अच्छाइयों-बुराइयों पर गहराई से विचार करते रहते थे। इसलिए वह जीवन के पारखी हो गये थे। इन्सान की उलझनों को सुलझाना वह अपना धर्म समझते थे। शेख सादी हमेशा संन्तों का जीवन बिताते थे। यात्रा पैदल किया करते थे। बादशाह लोगों में भी महात्मा शेख सादी का बहुत मान था। पर उन्होंने कभी भी किसी की खुशामद नहीं की थी। इस तरह शेख सादी ने अपने समय के समाज की सेवा की। वह चाहते थे कि आने वाली पीढ़ियाँ भी उनके तजुबों से लाभ उठा सकें। इसलिए वह अपने विचारों को छोटी-छोटी कहानियों में छोड़ गये हैं। यही कारण है कि शेख सादी का यश उनके देश से उठकर सारे संसार में फैल गया और वह जगतभर में सदा-सदा को लिए अमर हो गये हैं। संसार की बहुत-सी भाषाओं में सादी की पुस्तकों का अनुवाद हो चुका है। उनकी कुछ चुनींदा कहानियों का हिन्दी संकलन है यह 'शेख सादी की कहानियाँ'।

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Hard Cover

Author

Sheikh Sadi

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